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वाणी-वन्दन / विमल राजस्थानी
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भारती! जय भारती!!
कोटि-कोटि कल्पनाएँ
कोटि-कोटि भावनाएँ
रूप-श्री सँवारतीं
भारती! जय भारती!!
सहज, स्निग्ध सुरभि-स्नात
वासन्ती कनक गात
फैला हिम-हेम-चीर
रूप-रंग वारती
भारती! जय भारती!!
पाकर तब स्नेह-दान
बनता मानव महान
अन्तर छवि निखर-निखर
अग-जग में गयी बिखर
सुन्दर, शिव, सत्य, विमल-
कमल दल उघारती
भारती! जय भारती!!
जीवन-अम्बुधि विशाल
तिरते स्वप्निल प्रवाल
सस्मित हो महाकाल
चरणों पर शीश डाल
सरबस लुटाता ज्यौं-
मनसिज पर मालती
भारती! जय भारती!!
कवि के शत नमन गहो
वाणी में बसी रहो
जीवन की धरती पर-
सुरसरि-सी सदा बहो
अन्तर की शिरा-शिरा
वन्दना उचारती,
भारती! जय भारती!!
-वसंत-पंचमी
28.2.1955