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वाण बरसा सहेले तैयार / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
Kavita Kosh से
बिनु रे गांडीव, मोर खाली खाली देहिया हो।
तीखे-चोखे-वान यदि मारैय हो सांवलिया॥
सौ सौ भैया दुरयोधन चाचा के लरिकवा हो।
सजि-धजि तीरवा चलाबैय हो सांवलिया॥
गोबिन्द माधव! सुनू गोबिन्द माधव सुनू।
यहि में त बेरा मेरा पार हो सांवलिया॥