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वादा कर लूँगा मगर साफ़ मुक़र जाऊँगा / आनंद कुमार द्विवेदी

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तेरे नजदीक से होकर..... जो गुजर जाऊँगा
कह नहीं सकता जियूँगा, कि मैं मर जाऊंगा

उनका आगाज़ ही लगता है क़यामत मुझको
उनको डर था कि मैं, अंजाम से डर जाऊँगा

मुझको मयख्वार बनाती हुई, नज़रों वाले
मैक़दे बंद ना करना , मैं किधर जाऊँगा

तेरे दर से मुझे , .मंजिल का गुमाँ होता है
मैं जरा देर भी ठहरा,... तो ठहर जाऊँगा

इक हसीं ख्वाब के जैसा, वजूद है मेरा
दो घडी पलकों पे रह लूँगा उतर जाऊँगा

मुझपे ‘आनंद’ की सोहबत का असर है यारों
वादा कर लूँगा, मगर साफ़ मुकर जाऊँगा