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वापसी / नीलाभ
Kavita Kosh से
एक-दूसरे की तरफ़ पीठ किए लोग
अगर यात्रा की शुरूआत में
एक-दूसरे से सटकर भी खड़े हों
तो विपरीत दिशाओं में बढ़ते हैं
और यात्रा के अंत में एक-दूसरे से
बहुत दूर होते हैं--तुमने कहा था
फिर यह क्यों होता है
कि हर यात्रा के ख़त्म होने पर
मैं तुम्हें अपने सामने खड़ी पाता हूँ
(लन्दन,1980)