भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वापस लौटने वाला है युद्ध / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इत्मीनान से सातवाँ बेड़ा आ गया है बंगाल की खाड़ी में
आहिस्ते से बुढ़ा गया है चीन सागर...
हिंद महासागर को धकिया कर लहरें ले आईं हैं वहाँ
जहाँ बड़ी से बड़ी तबाही में ढल रहा है आदमी
चमेली की लता को मैंने चढ़ा दिया है छत पर
कीड़े लगे पत्तों के बीच अंगूर की लता चिढ़ा रही है मुँह
रोज-रोज सीने में चलनेवाली लड़ाई
देश की सरहदों पर जाकर खो गई है
बेगोनबेलिया के फूल टूट रहे हैं एक के बाद एक!

छपे कागजों का व्यापारी इत्मीनान से शराब गटक रहा है
सातवें बेड़े पर।
चुपचाप उठा लाया हूँ अपनी पाण्डुलिपि
टूटने में थोड़ी देर और है एक युग के
सरहदों से लौटने वाला है युद्ध अपने-अपने सीनों में
जल्दी से छिपा दो लाशें
दबा दो फूल
काट दो टहनियाँ
मुँह चिढ़ानेवाली लता को छांट दो
वापस कर दो मेरी पाण्डुलिपियाँ प्रकाशक।
युद्ध अपने-अपने सीनों में वापस लौटने वाला है
देश की सरहदों के टूटने में थोड़ी देर है।?

-तत्काल से