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वायुयान के वातायन से / बीना रानी गुप्ता

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वायुयान के वातायन से
देखी मैंने वह
पावन भूमि
जिसे बसाया
‘ने’ ऋषि ने
झांका वातायन से
देखा नयनाभिराम दृश्य
बर्फीले पहाड़
फैला नीला रंग सर्वत्र
कृष्ण सी कान्ति
सूर्य प्रभा से नहाये
उज्जवल पर्वत शिखर
रूई के फोए से
उड़ते बादल
अथाह सागर सा भूतल
कुमकुम सी पहाड़ियों पर
चित्रकथा सी अंकित
भारत नेपाल की
मैत्री कथा
जानकी की बाललीलाएं
इन पर्वतों में सुरक्षित
राम के चरण पड़े थे कभी
इसी अहसास से रोमांचित मन
त्रिशूली की
सर्पीली पतली धारा
नित नये इतिहास रचती
पेड़ पौधों पशु पक्षियों की
माँ सी
बहे जा रही
अनगिनत गलियों में
कथा बयां करती
देखो-देखो
फेन उगलते समुद्र से
कूदी एक नीली लहर
व्हेल मछली सी उछली
पहाड़ियों की हरी पट्टियाँ
जैसे गलीचा
बनाया हो कारीगर ने
भूरी, पीली, मटमैली,
लाल, हरी रंग की मिट्टी
नव-नव रंगों से सजी
मां जानकी की साड़ी सी लगती
नदी की पतली रेखा
साड़ी की किनारी सी सजती
ऊपर से देखूं तो लगता
पूरा विश्व एक
न अमेरिका, लन्दन
पाक, ईरान, तुरान,
सीमाओं में बांटा मैंने तुमने
हे! ईश्वर मुझे भी पंख दे दो
मैं उड़कर देख सकूं
तुम्हारी खूबसूरत दुनिया
आकश और धरती
के बीचों-बीच
मन चाहता है
कभी आकाश छू लूं
चरण रख लूं
पर्वत शिखर पर
दोनों हाथों को उठाकर
छूं लू उसे
जो छिपा है इन
नीले सफेद बादलों में
उस विराट को देखा मैंने
पहली बार
आत्म का विस्तार
विस्मय से भरता
है यह साक्षात्कार
आभार के लिए
क्या कोई
शब्द है
मेरे पास?