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वालिद से मुख़ातिब / रसूल हम्ज़ातव / सुरेश सलिल
Kavita Kosh से
सुनाऊँगा नहीं मैं अपने नए शेअर तुम्हें
न ही पूछूँगा : पहले कभी सुना है इन्हें !
सीखा है तुम्हीं से मैंने, कि एक शाअइर
किस तरह पेश आए — घर या बाहिर,
क्यूँ भला सुना फिरे इसे - उसे, यहाँ - वहाँ
शाअइर अपना ख़ुद का नया क़लाम !
सिफ़त तो तब है कि क़लमबन्द होते ही
गुनगुनाने लग जाए उसे ख़ास - ओ - आम !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल