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वासना-समासीना, महती जगती दीना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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वासना-समासीना,
महती जगती दीना।
जलद-पयोधर-भारा,
रवि-शशि-तारक-हारा,
व्योम-मुखच्छबिसारा
शतधारा पथ-हीना।
ॠषिकुल-कल-कण्ठस्तुति,
दिव्य-शस्य-सकलाहुति,
निगमागम-शास्त्रश्रुति
रासभ-वासव-वीणा।