भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वासन्ती व्यास / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
ढहने दो छन्द-बन्ध
बहने दो गीत-गन्ध
वर्तुली लहरियों में वासन्ती व्यास ।
खँडहरी हवाओं में
जीना, क्या जीना
आने दो आने दो
फ़रवरी महीना
धूप में नहाने दो पंकिल इतिहास ।
खेतों पर चढ़ने दो
सोने का पानी
हर बग़िया मौसम की
लगे राजधानी
होठों से जुड़ने दो होठों की प्यास ।