भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वासन्ती हवा / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
ई वासन्ती हवा
कतेॅ मुलायम, कतेॅ गुदगुदोॅ
कत्तेॅ सुगन्धित
रंग केन्होॅ दपदप!
केन्हंे नी होतै
आखिर आवी जे रहलोॅ छै
दक्खिन देश सेॅ हवा
केरल के कामिनी सिनी सेॅ मिली
आन्ध्र के अभिसारिकाओं सेॅ गपसप करतेॅ।
तही सेॅ तेॅ एत्तेॅ गमगम छै
दक्खिन दिशा सेॅ ऐतेॅ ई वासन्ती हवा
ई हवा के ठोर केन्होॅ छै-लाल-लाल
कहाँ खेलै छै जान
केकरोॅ हाथोॅ सेॅ खैलेॅ छै पान
चमकै छै ठोर
चमकै छै दाँत
खिलखिलाय केॅ हाँसै छै
वासन्ती हवा।