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वासवदत्ता — 1 / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
अफ़्सुर्दगी। अवसाद। साँझ। चन्द्रमा।
अभी यह डूबता हुआ सूरज एक-एक करके इन्हें बोल देगा।
मुझे हर शाम कविता की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वह
मुझे याद दिलाता है कि कभी-कभी दो किनारे साफ़-साफ़
दिखा सकती हो, लेकिन बीच की नदी दिखाई नहीं देगी।
पानी की जगह वह ख़ुद दिखाई देगा। वह सिर्फ़ मेरे लिए
दिखाई देगा पानी की जगह। मैं दो धागे पहनकर उसमें
तैर सकती हूँ। वह शाम को भी डूबने से इनकार कर देगा।
मैं भीगती हूँ सूर्यास्त की लाल नदी में। बहुत अकेलापन
चाहिए होता है मुझे।
इमली के पेड़ों के नीचे से सरसराती हुई एक ध्वनि को मैं
अपनी देह का चिथड़ा पहनाने की कोशिश करती हूँ —
वासवदत्ता !