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वासुदेव प्याला / अज्ञेय

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 यह वासुदेव प्याला
भरते ही कृष्ण का चरण-स्पर्श पा
रीत जाता है
और फिर भरता है
अनवरत : इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है।
आश्चर्य यह है कि यह बाढ़
जिस के चरण छूती है
वह नहीं है डलिया में सोया
बाल-कृष्ण : वह छलिया
वह साँवलिया है जो
कालिय नाग के मणिपूर मस्तक पर
नाच रहा है।
उस नर्तमान चरण को छूता है जल
और उतर जाता है :
पानी उतर जाता है...
ओ रह : कृष्ण! तुम क्या
नाग के नथैया
और कालिन्दी के कन्हैया हो
या कि नाग के ही बचैया-
कि यह बाढ़ भी क्या इसी में धन्य है
कि नाग ही तुम्हारा शरण्य है?

नयी दिल्ली, 16 दिसम्बर, 1980