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वाह! क्या ख़ूब! उपलब्धियाँ मित्रवर! / जितेन्द्र 'जौहर'
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वाह! क्या ख़ूब! उपलब्धियाँ मित्रवर!
चाँद पर बस रहीं, बस्तियाँ मित्रवर!
भूख से मर गया वो तड़पता हुआ,
लाश पर सिक रहीं, रोटियाँ मित्रवर!
रोशनी तो बहुत की जलाकर दिये,
फिर भी क़ायम हैं, तारीक़ियाँ मित्रवर!
वो सरेआम सूरज चुरा ले गया,
चाँद भरता रहा सिसकियाँ मित्रवर!
ग़म ने शायद किया याद होगा मुझे,
मुझको आने लगीं हिचकियाँ मित्रवर!
फोन ने जबसे जीवन में घुसपैठ की,
अलविदा हो गयीं चिट्ठियाँ मित्रवर!