वाह क्या कहने / अशेष श्रीवास्तव
वाह क्या कहने
वाह क्या लोग...
गाली बकते
तहज़ीब सिखाते लोग...
रिश्वत लेते
ईमानदारी सिखाते लोग...
धत-कर्म करते
धर्म का पाठ पढ़ाते लोग...
बेशर्म रहते
शर्म का वास्ता देते लोग...
झूठ बोलते
सच्चाई का पाठ पढ़ाते लोग...
गंदगी फैलाते
स्वच्छता सिखलाते लोग...
हिंसा भड़काते
शाँति की अपील करते लोग...
धोखा देते
भरोसा दिलाते लोग...
खंजर छुपाये
प्यार का हाथ बढ़ाते लोग...
ईर्ष्या से जले भुने
तारीफ़ करते लोग...
चोरी करते
दानवीर बनते लोग...
एसी में बैठ
श्रम का पाठ पढ़ाते लोग...
दंभ से भरे हुए
विनम्रता सिखाते लोग...
माँ-बाप को दुत्कारते
तीर्थ-दान-पुण्य करते लोग...
नियम-कानून तोड़ते
अनुशासन सिखाते लोग...
रास्ता भटके
राह दिखलाते लोग...
कथनी कुछ, करनी कुछ
अजब से दोगले लोग...
कहाँ तक गिनती कर पायेँ
वाह री दुनियाँ वाह रे लोग...