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वाह रे ह्रदय / रामकृपाल गुप्ता

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छूटता है प्यार वीणा की मधुर झंकार से क्यों
टूटता है तार बन्धन का कहो अब प्यार से क्यों।
मद भरा आह्वान नभ की तारिका का क्यों न भाये
चंद्रिका की मधुरिमा से ज्वार क्यों उर में न आये
रे ह्नदय होता विरागी बसंती संसार से क्यों
छूटता है प्यारवीणा की मधुर झंकार से क्यों
सच कहाँ से सीख आया गीतआज प्रयाण के रे
प्रणय के संगीत भूलेसुध रही तन त्राण की रे
प्रभाती थी वेदना अब उगलतांगार से क्यों
छूटता है प्यार वीणा की मधुर झंकार से क्यों
भूल कर नर्तन नियति का ढूँढता संदेश कैसे
रे भ्रमर भूला कमलिनी का गुलाबी वेश कैसे
हिलस का निष्ठुर ह्नदय यहआज करूण पुकार से क्यों
छूटता है प्यार वीणा की मधुर झंकार से क्यों