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वाह वाह छिन्ज पई दरबार। / बुल्ले शाह

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वाह वाह छिन्ज पई दरबार।
खलक तमाशे आई यार।

असाँ अज्ज की कीता ते कल्ल की करना,
भट्ठ असाडा आया।
ऐसी वाह क्यारी बीजी,
जो चिड़िआँ खेत वन्जाया।
मगर पीआ दे जेहड़े लग्गे,
उठ चल पहुता तार।

वाह वाह छिन्ज पई दरबार।

इक्क अलाम्भा सइआँ दा,
दूजा है संसार।
नंग नामूस एत्थों दे एत्थे,
लाह पगड़ी भूएं मार।

वाह वाह छिन्ज पई दरबार।

नड्ढा गिरदा बुड्ढा गिरदा,
आपो आपणी बार।
की बीवी की बाँदी लौंढी,
की धोबी मुटिआर।
अमलाँ सेती होण निबेड़े,
नबी लँघावे पार।

वाह वाह छिन्ज पई दरबार।

बुल्ला सहु नूँ वेक्खण आवे,
आपणा भाणा करदा।
जूनो गूनी भांउे घड़दा,
ठीकरिआँ कर धरदा।
एह तमाशा वेख के,
चल अगला वेख बाज़ार।

वाह वाह छिन्ज पई दरबार।
खलक तमाशे आई यार।

शब्दार्थ
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