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वा मेरा दीदा ए बीना है तो / ज़िया फतेहाबादी
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वा मेरा दीदा-ए बीना है तो ।
मैंने दुनिया तुझे देखा है तो ।
इक नई कहकशाँ का मंज़र,
मैंने पलकों पे सजाया है तो ।
आईना देख के मालूम हुआ,
कोई दीवाना भी मुझ-सा है तो ।
पा बा जौलाँ रहे क़तरा-क़तरा,
लम्हे-लम्हे का तकाज़ा है तो ।
कई सदियों से जुड़ा हूँ अब तक,
मेरा मैं टूट के बिखरा है तो ।
अक्स ही अक्स हैं लेकिन हर अक्स
आईनाख़ाने में तनहा है तो ।
ऐ ’ज़िया’ तू भी किसी का हो जा,
कोई दुनिया में किसी का है तो ।