भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विंडो में है ना गौरैया / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम विकास के दौर से
गुजर रहे हैं
और गौरैया हमसे
दूर होती जा रही है

अब न उसे आंगन मिलते
न आँगन में बिखरे दाने
न घोसला बनाने के लिए
कमरों के कोने, न फोटो के फ्रेम

वह एसिड रेन जैसी पर्यावरण से
जुड़ी कड़ी में फंसती जा रही है

परलोक की दूत है गौरैया
अमेरिका कि साइकोपॉम्प
यानी इहलोक और परलोक के बीच
आवाजाही करने वाली जीव

दंतकथाओ में वह खुशियो की
द्योतक है
बगीचे के पेड़ पर बैठी हो
या मुंडेर या बालकनी में
घर खुशियो से भर जाता है
संतान होने का संकेत मिल जाता है

पराभौतिक शक्तियों की
जानकार है गौरैया
जहाँ अदृश्य शक्ति मौजूद है
बैठ जाती है झुंड बनाकर
बारिश होने का
संकेत देने के लिए
धूल से नहाती है गौरैया

अब गौरैया दिखती नहीं
विकास के जुनून में
हमने उसे खो दिया है
अब वह गूगल में मौजूद है
बस एक विंडो बन