भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विकट है यह... / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
					
										
					
					विकट है यह सघन अंधकार का झुरमुट
कि मैं चला आऊंगा फिर भी
- तुम्हारी पुकार के बने पथ से
- तुमसे मिलने
 
 
 
- नदी से कह कर
- कि वह बहे, जहाँ बहती है
 
- दिये से कह कर
- कि वह जले जहाँ जलता है
 
- फूल से कह कर
- कि वह खिले, जहाँ खिलता है
 
 
	
	

