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विकास अभी रुका तो नहीं है / शैलेन्द्र चौहान

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एक गहरा आलोड़न
मन में, हृदय में
रक्त में, शिराओं में
इतना बुरा तो नहीं है
यह वक्त

तुमुलनाद करती घंट-ध्वनियाँ
थिरकती नृत्याँगनाएँ
शास्त्रीय-नृत्य, संगीत
विलासिता, उपभोग की
अगणित वस्तुएँ

चाहा था यही तो
पितर-पूर्वजों ने
धन-धान्य से लबालब
भोग विलासपूर्ण जीवन हो
संतानों का

संतानें वे नहीं
जिन्होंने उपजाया धान्य
संतानें वे नहीं
जिन्होंने बनाए भवन

वे भी नहीं
जिन्होंने नहीं कमाया
अकूत धन
बिना श्रम के
बे-ईमान हो

संतानें तो वही
जिन्होंने पिया हो
दूध चाँदी के चम्मचों से
जिन्होंने खाई हों
स्वर्ण भस्में
या जिन्होंने जन्मते ही
देखकर रुधिर और माँस
मारी हों किलकारियाँ

संतानें वे
जिनके पास सारे सूत्र हैं
वैभव-विलास
सँजो पाने के

जिनके पास है फन
एक को सौ में बदलने का
कला है जिनके पास
औरों के जिस्म की खाल
अपने जिस्म पर चढ़ा लेने की

’यानी’ का कंसर्ट
’माईकल जेक्सन’ का रॉक
सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या राय की
सुंदर देहयष्टि

मदिरा के अगणित प्रकार
विकृतियों के विभिन्न आकार
वाहनों की अनेकों किस्में
आभूषणों की सहस्त्रों डिजाइनें

भाँति-भाँति के
माँस और रुधिर से बने पकवान

वक्त इतना तो
बुरा नहीं
विकास
अभी रुका तो नहीं
और क्या है
जो अभी होना है
जंगल नहीं,
जानवर भी नहीं

जंगलीपन बचा है अभी
है शेष पशुता,
बर्बरता अभी