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विकास तुम न आना / राकेश कुमार पटेल

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विकास तुम न आना
तुम आओगे तो बंजर हो जाएगी
हमारे पुरखों की हरी-भरी धरती
तुम आओगे तो वीरान हो जाएंगे
हमारे पहरेदार हरे-भरे जंगल
तुम आओगे तो गंदी हो जाएंगी
अविरल कल-कल बहती हुई नदियाँ
तुम आओगे तो टूटकर बिखर जाएंगे
गर्व से तनकर खड़े, ये इतराते पहाड़
तुम आओगे तो ज़हरीली हो जाएंगी
मंद-मंद बहती ये चंचल हवाएँ
तुम आओगे तो सुनसान हो जाएगा आसमान
बादलों की रिमझिम भी हमसे रूठ जाएगी
तुम आओगे तो बेघर हो जाएंगे
तमाम निर्दोष आज़ाद ख्याल चिरई-चुरूमन

विकास तुम बिलकुल न आना
हम तुम्हारे आतंक से भयाक्रांत हैं!