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विकास / अनिल मिश्र
Kavita Kosh से
पेड़ की डालें फैलती जाती हैं चारों ओर
डंठल और पत्तियों से बनाती घनी छतरी
धीरे-धीरे चिड़ियां भी आती हैं
और बना लेती हैं डालियों से लटकते घोंसले
फिर आती हैं लताएं पास जंगल से रेंगती हुई
लिपट जाती हैं ऊपर से नीचे तने के साथ
ऋतु आने पर महक आती है
फूलों की डोली में बैठी
कीट आते हैं पतंगे आते हैं
रंग आता है और आते हैं खट्टे-मीठे स्वाद
पीछे-पीछे आता है मनुष्य
और उस जगह विकास शुरू करने की घोषणा करता है