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विचारों का बोझ / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
हवा में उड़ते
सूखे पत्तों से आवारा विचार
न जाने वक्त की आँधी में
उड़ते-उड़ते
किस ठौर जा लगें?
कुचले जाएँगे
किसी के बेदर्द पैरों तले
या बेजान-से पड़े होंगे
किसी सुनसान राह में
असहाय...
जीवन में कुछ
न कर पाने का बोझ लिए...!