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विछोह / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

वसन्त रोॅ लौटै भर के देर छेलै
कि ग्रीष्म ऋतु के देह तपेॅ लागलै
आबेॅ के कहेॅ
केकरोॅ सौभाग्य
आरो केकरोॅ दुर्भाग्य जागलै।

केन्होॅ ई विछोह
नै आँखी मेॅ पानी
नै अचेत होय गिरवोॅ
खाली तपै छै देह आरो मोॅन
साँसो ठो गरम-गरम
ई सोची केॅ
कि आबेॅ वसन्त के वियोग मेॅ
हेनै केॅ तपेॅ लेॅ पड़तै
आँखो बरसतै
थरथरियो लगतै
तबेॅ जाय कहीं ऐतै वसन्त
ग्रीष्म के मोॅन बड़ी उदास छै
ढाढ़स बंधाय लेॅ कोय्यो नै पास छै।