विजय-दिवस / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
भुलइत पावसकेर मचकीपर बैसल ई पन्द्रह अगस्त अछि।
मनुजताक मनकेर मनोरथ
मनुजक कारण भने भग्न हो
फलित न दलितक यदि आकांक्षा
के, पुनि की उत्सव निमग्न हो,
सुधा-कलश भरने ई वसुधा श्रम-सीकर बिनु आइ व्यस्त अछि।
पुनि पहुँचल पल भरिक हेतु ई
पुण्य-पर्व सन्देश सुनाबय
जन जनमे अन्तर्हित शक्तिक
एक-एक उपयोग जनाबय
जन-कल्याणक लक्ष्य-शिखर धरि पहुँचक पथ एखनहुट सिकस्त अछि।
पर-अवलम्बित जीवन भोगब
पौरुषकेर अपमान मानिकऽ
‘काल-चक्र संकेत करै’ अछि
करी काज सभ चीन्हि जानिकऽ
राष्ट्रक नव-निर्माण करक ति अपन बनाओल पथ प्रशस्त अछि।
गाम-गाम आ नगर-नगरमे
नव-उत्साहक भाव जगाबय
गली-गली, आङन-आङनसँ
दुख दारिद्रय अभाव भगाबय
राष्ट्रक सार्वभौम सत्ता जनताक हाथमे भेल न्यस्त अछि।
अपने कर्मक भोगि सुफल वा
कुफल मनुष्यक जीवन बीतय
तखन अभागल होयत एहन के
अपन नोरमे अपने तीतय
जखन मनुष्यक बुद्धिक भयसँ प्रकृतिक पाँचो तत्त्व त्रस्त अछि।
कृषक-श्रमिक धरती माताकेर
आइ उतारथु फेर आरती
मुखक मृदुल मुस्कान मुखर हो
महामन्त्र बनि ‘जयति भारती’
पलमे दैन्य पड़ाय सकै’ अछि, स्वयं प्रकृति जेँ मुक्त-हस्त अछि।
भारतीयकेर हृदय-कुहरमे
भारतीयता गौरव जागय
भारत माताकेर आँचरमे
निष्क्रियताकेर दाग न लागय
विजय-दिवस पुनि देखथ आयल-‘के सक्रिय आ के उदस्त अछि’।