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विजेता / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी

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उगने के लिए बाक़ी
जितनी भी रोशनियाँ हैं ,तुम्हारी हैं
खुलने के लिए बाकी आकाश
खिलने के लिए बाक़ी फूल
और चलने के लिए बाक़ी रास्ता
सभी तुम्हारे हैं

तुम्हारे ही हैं चाँद और सितारों के गीत
जादुई उपत्यका, पहाड़ और समुद्र की कहानी
सहस्र कल्पना और उनके हरेक पंख

तुम जहाँ पर खड़े हो वह धरती तुम्हारी ही है
यह आँधी और बौछार का संगीत तुम्हारा ही है
इस आग के लपके में जल रहा
तप्त विद्रोह भी तुम्हारा ही है

बढ़ने के लिए जितना चाहिए आसमान वह तुम्हारा ही है
फैलने के लिए जितना चाहिए क्षितिज वह तुम्हारा ही है
तुम्हारे साथ ही सुरक्षित है नैसर्गिक
तुम्हारी उड़ान
और तुम्हारे प्रिय सपने

जैसे घास, पेड़ और जंगल
जैसे हवा, पानी और बादल
उतने ही स्वतन्त्र हो तुम
इस मिट्टी के ऊपर खड़ा होने के लिए
और अपनी राह बनाकर चलने के लिए

तुम्हारे साथ
जो पल रहा है विचार और संकल्प
वह केवल तुम्हारा है
मनुष्य के दुःख और दासता के बारे में
उनके मोक्ष और मुक्ति के बारे में
जो हैं सवाल तुम्हारे पास
तुम्हारा ही है
उनका जवाब ढूँढ़ने वाला प्रयत्न

कुछ भी नहीं है दुनिया में
मन से बड़ा औ स्वप्न से आगे
कोई छीन नहीं पायेगा तुमसे
कोई लूट नहीं पायेगा
केवल तुम्हारे हैं
तुम्हारे द्वारा तय किये गये लक्ष्य
और जब तक बाकी है
इन्सान होकर जि़न्दा रहने का लक्ष्य
होंगे तुम सदा
विजेता।