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विज्ञानसम्मत कीर्ति / मलय रायचौधुरी / सुलोचना वर्मा

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पँखा टाँगने के उस ख़ाली हुक से
गले में नायलोन की रस्सी बाँध लटक जाओ
कपाट सटाकर दरवाज़े के पीछे
ऊँची तान पर रेडिओ चलाकर झटपट
साड़ी साया कमीज़ खोलकर टूल के ऊपर
खड़े होकर गले में फाँसी की रस्सी पहन लेना
सारी रात अन्धकार में अकेली लटकती रहना
आँखें खुलीं जीभ बाहर निकली हुई
दोनों ओर बेहोश दो हाथ और स्तन
जमी हुई षोडशी के शून्य पाँव के नीचे
पृथ्वी की छुआछूत से परे जहाँ
बहुत पुरुषों के होठों ने प्यार किया है
उस शरीर को छूने में डरेंगे आज वो लोग

लटको, लाश उतारने के लिए हूँ मैं |

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
            বিজ্ঞানসন্মত কীর্তি

ফ্যান টাঙাবার ওই খালি হুক থেকে
কন্ঠে নাইলন দড়ি বেঁধে ঝুলে পড়ো
কপাট ভেজিয়ে দরোজার চুপিসাড়ে
উঁচুতানে রেডিও চালিয়ে তাড়াতাড়ি
শাড়ি শায়া জামে খুলে টুলের ওপরে
দাঁড়িয়ে গলায় ফাঁস-রশি পরে নিও
সারারাত অন্ধকারে একা ঝুলে থেকো
চোখ ঠিকরিয়ে জিভ বাইরে বেরোনো
দুপাশে বেহঁশ দুই হাত আর স্তন
জমাট ষোড়শি শূন্য পায়ের তলায়
পৃথিবীর ধরাছোঁয়া ছাড়িয়ে যেখানে
বহু পুরুষের ঠোঁটে আদর খেয়েছ
সে-শরীর ছুঁতে ভয় পাবে তারা আজ

দোলো লাশ নামাবার জন্য আছি আমি ।