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विज्ञापनों का गोरखधंधा / कृष्ण कुमार यादव
Kavita Kosh से
विज्ञापनों ने ढँक दिया है
सभी बुराईयों को
हर रोज़ चढ़ जाती हैं उन पर
कुछ नामी-गिरामी चेहरों की परतें
फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है
उसमें कीडे़ हों या कीटनाशक
या चिल्लाए कोई सुनीता नारायण
पर इन नन्हें बच्चों को कौन समझाए
विज्ञापनों के पीछे छुपे पैसे का सच
बच्चे तो सिर्फ टी०वी० और बड़े परदे
पर देखे उस अंकल को ही पहचानते हैं
ज़िद करते हैं
उस सामान को घर लाने की
बच्चे की ज़िद के आगे
माँ-बाप भी मज़बूर हैं
ऐसे ही चलता है
विज्ञापनों का गोरखधंधा ।