भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विज्ञापन कहता है / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
होगा विकसित देश
सिर्फ विज्ञापन कहता है
राम भरोसे भोजन, कपड़ा
शिक्षा औ आवास
अर्थ-शास्त्र भी औसत धन को
कहने लगा विकास
सम्मानित समुदाय
जेठ को सावन कहता है
जब-जब बात उठी है
बस्ती कब होगी मोडर्न
तब-तब मुद्दा बनकर आया
पिछड़ा और सवर्ण
क्या हालता है,
मुद्रा-दर का मंदन कहता है
जिसने सपने कम दिखलाए
हुआ वही कमजोर
तकनीकों ने संध्या को भी
सिद्ध किया है भोर
सब हल होगा,
बार-बार आश्वासन कहता है