विडंबना / कुलवंत सिंह
क्या विडंबना है - हम इतनी तरक्की कर पाए,
भिखारी को मोबाइल तो दे सके किंतु रोटी न दे पाए।
क्या विडंबना है - 70 साल से प्रौढ़ शिक्षा चला रहे हैं,
बच्चों को अनपढ़ रख उन्हें बूढ़े होने पर पढा रहे हैं।
क्या विडंबना है – में मेट्रो रेल तो ला सके हैं,
लेकिन आम आदमी को एक घर न दे सके हैं।
क्या विडंबना है सबसे अधिककानून हमने बनाए
लेकिन भ्रष्टाचार देश का अभिन्न अंग है यही समझ पाए।
क्या विडंबना है- खेती की पैदावार दस गुना बढ़ा चुके हैं,
लेकिन किसानों की आत्महत्या को नहीं रोक सके हैं।
क्या विडंबना है- बच्चे भगवान का रूप होते हैं,
लेकिन सबसे अधिक बाल मजदूर हमारे यहां होते हैं।
क्या विडंबना है- मल्टीप्लेक्स, माल्स, गगनचुंबी इमारतें हैं,
लेकिन यहां आधे लोग झुग्गी झोंपड़ी में रहते हैं।
क्या विडंबना है - कितने कोर्ट कचहरी खुलवाए
लेकिन एक मुकदमा निपटाने को चार जन्म लेने पड़ जाएं।
क्या विडंबना है लाखों डिग्री धारक बना दिए हैं,
लेकिन उनको रोजगार के कोई साधन नहीं दिए हैं।
क्या विडंबना है - कितने करोड़पति पैदा किए घर से
लेकिन आधी जनता दो वक्त की रोटी को तरसे।
क्या विडंबना है - देश को ये नेता चलाते हैं,
जो देश को कम देशवासियों को ज्यादा चलाते हैं।