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विडम्बना / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
हाथी के दुश्मन हो गए हाथी दाँत,
गेंडे के दुश्मन उसी के सींग,
हिरनों का बैरी हुआ उन्हीं का चर्म,
शेरों-बाघों की शत्रु उन्हीं की खाल और अवयव.
विषधर का शत्रु हुआ उसी का विष,
समूर की ज़ान का गाहक हुआ उसी का लोम,
इसी तरह
प्रेमियों की जान ली प्रेम ने
सुकरात को मारा सत्य ने,
ईसा को प्रेम ने,
और करूणा ने कृष्ण को
गाँधी को मारा गोडसे ने नहीं,
गाँधी के उदात्त ने.
नदी का शत्रु हुआ उसका प्रवाह,
पहाड़ को डसा ऊँचाई ने,
और वनों की देह छलनी की काठ ने.
इसी तरह
इसी तरह
आदमी के भीतर
आदमी को मारा
आदमी के गुमान ने?