विदाई हो गइल / विनय राय ‘बबुरंग’
आलू आ पियाज क फिंचाई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।
टमाटरो के केहू आजु पूछत नइखे
अठनियों क भाव केहू किनत नइखे
गाड़ी कइसे चली केहू सोचत नइखे
एकर दवाई केहू खोजत नइखे
आगे क सपना कुल खटाई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।
आपन इज्जत पानी के बचावे के परल
बेटी क वियाह अंसो टारे के परल
कइसो-कइसो घर में दिया बारे के परल
आपन दिन कइसहूं गुजारे के परल
जेवन अंसो हमनी क पिटाई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।
हालत अइसन देखऽ मन थोर भइल बा
आजु खरीदार कमीसन खोर भइल बा
अंसो एतना कबो ना विकास भइल बा
विकास नाही भइया विनास भइल बा
अच्छो काम कइला पर बुराई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।
अगली साल बोइब का बुझात नइखे
लागल आगि अबहीं बुतात नइखे
अंखिया क लोर ई सुखात नइखे
कबले सुखाई दुख ओरात नइखे
आजु क ई जुगवे कसाई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।
पैदा करीं हम अउरी भाव करे दूसर
ए ही रजनीतिया से भइल बानीं टूअर
पीठ थपथपाई के चलाई देलं मूसर
केसर क कियारी के बनाई देलं ऊसर
असरा पर पानी फेराई हो गइल
गांव से किसानन क विदाई हो गइल।।