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विदा की अगन / शार्दुला नोगजा
Kavita Kosh से
मैं कोयला हूँ कहो तो आग दूँ
या फिर धुआँ कर दूँ।
मुझे डर है ना दर्देदिल
निगाहों से बयाँ कर दूँ।
मुझे अफ़सोस है तुमने मुझे
अपना नहीं समझा।
खुशी तो बाँट ली मुझ से
मगर गम पास ही रखा।
सुना था दिल की मिट्टी में
ये गम बन फूल खिलता है।
बेगरज दोस्त दुनिया में
बड़ी किस्मत से मिलता है।
चलो छोड़ो गिले शिकवे
विदा होने की बारी है।
इस कोयले में चमक जो है
अमानत वो तुम्हारी है।