नर सें नर के द्रोह-मोह-मद-ममता नेह-विकर्ष
सब समेटी काँखोॅ में चललै आय पुरानोॅ वर्ष।
युद्ध, प्रकृति के आगिन-पानी-अंधड़ घोर तुफान,
सभै चपेटोॅ सें उबरी केॅ खाढ़ोॅ हिन्दुस्तान।
दू वलवान राष्ट्र ने देॅ-देॅ पाकोॅ केॅ हथियार
दुर्बल-निर्बल जनता खातिर केॅ देलकै तैयार
हरा-भरा धरती के कोनोॅ जल-थल खेत-खम्हार
तड़पै जिन्दा लाश लहू पर सगरो ढेर पथार।
मचलै हाहाकार तजलकै मरदें घोॅर-दुआर
मौगी भेलै परबस लेकिन मानलकै नै हार।
सौंसे इतिहासोॅ के एक्के एकरोॅ एक मिशाल।
सौंसे दुनियाँ के आगू में खाढ़ोॅ अजब सवाल।
सब चुप, सब चुप सत्य कहै में कैहने ई संकोच?
ई संसार नपुंशक-दंभी यहेॅ एक अफसोच!
लेकिन यै संसार बीच में भारत एक महान
सदा पददलित के संरक्षक, नीति-निपुण बलवान।
शरणागत-आगत के सब दिन स्वच्छ अतिथि सत्कार
अत्याचार-खिलाफ यहाँ पर सब दिन खुललोॅ द्वार।
एक करोड़ अतिथि के सेवा, सात-कोटि के ध्यान
नर संहार करी केॅ बनलै दुश्मन पाकिस्तान।
दुश्मन पाकिस्तान करी केॅ ओकरोॅ दल-बल चूर
एक स्वतंत्र राष्ट्र के सिरजन जय भारत के शूर
‘शान्ति-शान्ति’ यै युद्ध-बीच में मचलै सिंह-निनाद
युद्ध-शान्ति दोनों में भारत दुनियाँ के सिरताज।
आय पुरानोॅ वर्ष समेटने सबटा खिस्सा साथ
चललै ई गठरी सौंपै लेॅ महाकाल के हाथ।
विदा पुरानोॅ वर्ष! विदा हे हर्ष-शोक उद्गार!
नया वर्ष कें, नया राष्ट्र के, स्बागत जय-जय कार।