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विदा लींद बख़त / आशा रावत
Kavita Kosh से
जावा कखि मिलणक
बैठा घंटा द्वी घंटा,
वेका बाद
ह्वे जांद अझेल,
समण वोलु सोचद
यो त यख
चिपक ग्ये लीसु-सि
कब बटे अयूं
अर कब जालो वापस
अपणा घौर।
जावा कखि रैणक
कुछ दिन
त चार दिन बाद
बीत जांद बुरि,
घौर वोला सोचदन
कब बटे अयूं
कब जालो वापस,
यो मैमान माछि- सि
बास मरण बैग्ये
अब त।
जावा कखि
भंड्या दिनक
त बीच बीच मा
कतगी दा बचद
झड़प हूंद हूंद
कबि ह्वे बि जांद,
घौर वोला खिझदन
कन जम ग्ये स्यो
डालु- सि
जणि कब उखड़ल।
जावा कबि
ब्वे मा
रावा कतगी दिन
मैना द्वी मैना
या बरस बि
तैबि विदा लींद बख़त
रूंद रूंद बोलद ब्वे-
कतगा चम जाण बैठ
म्यारु फतेलु,
कन ऐ तु यख
स्वीणा - सि।