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विदा होता चैत्र / संतोष श्रीवास्तव
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विदा होते चैत्र की शाम
झरे पत्तों की उदास
सिंफनी बजती है
तुम्हारी यादों के संग
तनहाई
रूह में उतरती है
मन के उदास कोनों में
जाते चैत्र का यह दृश्य
ठहरा रहेगा ताउम्र
ऐसे ही याद आता रहेगा
किसी सूने रास्ते पर
तुम्हारा आँख से ओझल
हो जाना
और क्षितिज तक
सब कुछ खोती शाम का!
ठहर जाना