भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विदा / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
याद आए, तो नहीं आँसू बहाना
क्यारियों को सींचना, गुलशन सजाना
चित्र तो मैंने जला डाले सभी, अब
पत्र सारे तुम नदी में फेंक आना
लोग हाथों में लिए पत्थर खड़े हों
किन्तु तुम निश्चित हो हँसना-हँसाना
फूल सा बच्चा कहीं सोता दिखे तो
चूम लेना गाल, लेकिन मत जगाना
यह नहीं इच्छा कि मुझको याद रक्खो
मित्र, पर अपराध मेरे भूल जाना