भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विदा / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
मैं तुम्हें दिल में लिए जाता हूँ
दिल की गहराइयों में —
और अपने संघर्ष को अपने मन में लिए।

विदा,
मेरे दोस्तो,
विदा !
सिन्धु के किनारे पाँत बाँध मत खड़े हो
चित्र-कार्डों में बने विहगों से
अपने रूमाल हिलाते हुए।
यह सब मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए।
मैं सिर से पैर तक
अपने को देखता हूँ दोस्तों की आँखों में।

ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा, शब्द के बिना।

रात्रि आकर द्वार पर ताला जड़ जाएगी,
वर्ष झरोखों पर अपने जाल बुनेंगे —
और मैं कारा-गीत ऊँचे स्वरों में उठाऊँगा —
उसे संघर्ष का गीत बना गाऊँगा।
हम फिर मिलेंगे,
दोस्तो,
फिर हम मिलेंगे ही।
साथ-साथ सूरज को देखकर हँसेंगे हम,
साथ-साथ जुटेंगे फिर संघर्ष में।

ओह, दोस्तो,
संघर्ष-सहोदरो,
कर्म-सहोदरो,
साथियो,
विदा !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह