भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विदा 3- अलविदा का क्षण / पल्लवी त्रिवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“जो तुमको विदा होना ही हो तो
तुम होना विदा छाती पर उकड़ू बैठे दुःख की तरह
टीसते रहना मौसम बेमौसम
तुम उखड़ना तलवे में धंसे आधे टूटे कांटे की तरह
जब तब फूटते रहना कंठ से आह बनकर
तुम होना विदा हाथों से उड़ी तितली की तरह
जितना उड़ो उतने ही चिपके रहना तर्जनी और अंगूठे के पोरों पर भुरभुरे रंग बनकर
सच तो ये कि
जिसकी विदा कठिन होती है
उसकी विदा असंभव होती है
वरना जो आसानी से विदा हो गए
वे तो कभी आये ही न थे
सुनो .. तुम होना विदा ऐसे कि
वाष्पित होना मुझ में से और बरस जाना मुझी पर
तुम लेना विदा यूं कि
'जाना’और ’ठहरना’ समानार्थी हो जायें