विदेशी मित्र के लिये / उर्मिल सत्यभूषण
मैंने न जानी तेरी भाषा
तूने न जानी मेरी भाषा
पर हमने समझी
दिल की भाषा
प्रीत की सुनली सुभाषा
होंठ पर मुस्कान आई
आँख में पहचान आई
जुड़ गये इन्सानी रिश्ते
पुल नहीं ये रेत के
सीमेंट के, कंकरीट के
सद्भाव के, सद्प्रीत के
हमने यहाँ कुछ पुल बनाये
शब्द के गुल खिलाये
प्यार के सपने सजाये
स्नेह संधि के तटों पर
कोष स्मृतियों के भरकर
अलविदा के, होंठ पर स्वर
उड़ चले पाखी गगन पर
ज्योति के परचम उठाये
शांति के ध्वज बढ़ाये
अमन के हम बन कबूतर
प्यार के हम दूत बनकर
अपने गगन, अपनी धरा पर
अपनी कलम, अपनी कला से
गीत प्रीतों के लिखेंगे
बीज डालेंगे शब्द के। प्यार की
खेती करेंगे। रौशनी की नींव डालेंगे
युद्ध के काले अंधेरे चीर डालेंगे
नफरतों शंकाओं की गर्हित घिनौनी भीत
तोड़ेंगे। प्रीत के पावन पुलों से सब की जोड़ेंगे।