विद्रोहिणी / उमा अर्पिता
तुम जब मुझे
विद्रोहिणी कहते हो,
यकीन करो/मुझे बिल्कुल
आश्चर्य नहीं होता/बुरा भी नहीं लगता
क्योंकि--
तुम्हारी नज़रों में तो/मैं
विद्रोहिणी ही कहलाऊँगी-
आखिर मेरे सवाल
तुम्हारी मान्यताओं का
उल्लंघन जो करते हैं, जिससे
तुम्हारा जीवन-बोध
संतुष्ट न होकर/बौखला उठता है
शायद--
तुम्हारी निष्ठा में
मेरा हर सवाल बाधा है!
तुम अवसर को पहचानते हो/जानते हो, कि
कब/क्या कहना है,
पर मैं तो
प्रत्यक्ष को/वो शब्द दे डालती हूँ,
जिनके अर्थ/सच होते हुए भी
कड़वे होते हैं...
दुनियादारी क्या है/इसे मैं
अब तक समझ नहीं पायी।
मुखौटों की दुनिया में
बहुमत तुम्हारे साथ होता है, जिससे
तुम समर्थ बन जाते हो/गलत होते हुए भी,
और मैं/ठीक होते हुए भी
तुम सब के बीच से निकाल
अलग कर दी जाती हूँ
नैतिक आदर्शों को
अपनी जागीर समझने वालों
मैं/तुम्हारी दृष्टि में
हमेशा ही
विद्रोहिणी हूँ/रहूँगी।