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विद्रोही कवि: फूल मरे पर मरे न बासू / दीपक जायसवाल

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ऐसा कवि जो आसमान में धान बो सकता था
ऐसा कवि जिसकी कविताएँ
आम की बौर की तरह महकती हैं
जो कवि महुए के चूने के इंतजार में था
जिसकी कविताओं में वनबेला फूलती है
जो हमारे लिए सड़को पर उतरता रहा
उस सूफ़ी की कविता उन हाथों में फहरेगी
जो अन्याय की विरुद्ध सड़कों पर उतरेंगे
ऐसे लोगों की प्रतिज्ञाओं में होंगे विद्रोही
जो किसी की बेटी के जलने से पहले कहेंगे
यह मैं होने नहीं दूँगा
जो अपनी जेबों में बाघ लेकर चलता था
जिसकी कविताओं में किसान-मेहनतकश का
दर्द भरा हुआ है
जिनकी कविताओं में आदमियत की पेड़ नानी
मरी नहीं है वह मोहनजोदाड़ो के तालाब में
स्नान करने गयी हैं
और शायद अब मेरा कवि विद्रोही भी।