पियरायी धरती, दहकते पलाश
नवजीवन पा जाए हर टूटी सांस
मधुमय मन, मौलिक हों अकुलाये शब्द
अबके कुछ ऐसे ही आना मधुमास।
पल्लव की पाँख लिए झूमें कचनार
मदमाती लहरों सी बह उठे बयार
छुई मुई सकुचाई कली खिल सके
अबके हर निमिष उठे महकी सी सांस।
कुसुमाकर आना तुम दुलहिन के द्वार
घूँघट पट खोलेगी झूमकर बयार
प्रणय गीत गाएंगे पंछी चहुँ ओर
प्रीत राग छेड़ेगी फागुन की आस।
पर्वत की पिघल उठे चोटी इस बार
सीमाएं सज्जित हों पहन विजय हार
प्रहरी का साहस, शहादत की आग
टूट चुकी साँसों को मिले नयी सांस।
सिंहासन कर पाएं जन मन से न्याय
पीड़ा परकाया बन निकले ना आह
संवेगी आंसू की रोक सको धार
अबकी तुम आ जाना बिरहिन के पास।
गंगा की अविरलता, यमुना का रंग
मिलना हो त्रेता सी सरयू के संग
मिलने का सुर बन कर सरिता की धार
मधुमय हो रसवंती बोली मधुमास।
केसर की क्यारी में बारूदी गंध
रिपुवन की काया की माया हो मंद
सांझ ढले प्यास लिए लौटे वह द्वार
विद्रोही यौवन को लगे ऐसी प्यास।
जाति-जाति, पंथ-पंथ बंटे नहीं देश
सुन्दर हो सुखमय हो, ऐसा परिवेश
राजनीति जनमुख हो, सत्ता जनधाम
ऐसा कुछ अद्भुत हो अबकी मधुमास।