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विद्रोही / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

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रूढ़िवाद का घोर विरोधी, परिपाटी का नाशक हूँ
नई रोशनी का उपासक, विप्लव का विकट उपासक हूँ
प्राचीनता की चिता-भस्म से प्रतिमा नई बनाता हूँ
नई कल्पना के सुमनों से रच-रच उसे सजाता हूँ

मैं तो चला आज, जिस पथ पर भगत गए, आज़ाद गए
खुदीराम-सुखदेव-राजगुरु-बिस्मिल रामप्रसाद गए
ममता शेष नहीं जीवन की बीत मृदुल अरमान गए
मैं तो आज बना विद्रोही, जग के झूठे मान गए

सिन्धु सलिल को क्षार करूँ, वह बड़वानल की ज्वाला हूँ
शंकर का भी कण्ठ जला दूँ, काल कूट का प्याला हूँ
हँसी उड़ाऊँ कानूनों की, वह बाँका मतवाला हूँ
शासन सत्ता की आँखों में सदा खटकने वाला हूँ

कठिन पन्थ है मेरे आगे, पर इसकी परवाह नहीं
मुझे ज़रूरत है वीरों की, भयभीतों की चाह नहीं
असन्तोष की आग नहीं, यह विप्लव की तैयारी है
आए मेरे साथ कि जिसको सजा मौत की प्यारी है

भस्मसात कर दूँ दुनिया को, धूमकेतु का तारा हूँ
पल में बरस बहा दूँ जग को, प्रलय जलद की धारा हूँ
जोश फूँक दूँ मुर्दों में, वह महाक्रान्ति का नारा हूँ
दुश्मन दल की ताक़त पर आघात कराल करारा हूँ

नहीं कल्पना के घोड़े पर बैठ हवाख़ोरी करता
उससे घृणा असीम, मौत से बिना लड़े ही जो मरता
मैं न हवाई महल बनाता, ठोस काम भाता मुझको
सुलह-बुझारत नहीं सुहाती, लड़ना बस आता मुझको

रचनाकाल : 1943