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विद्वान / शिवप्रसाद जोशी

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जो आदमी पढ़ा-लिखा पंडित होता है
वो कैसा होता है
उसे कैसा होना चाहिए
अपनी दाढ़ी अपने चश्मे अपनी अस्तव्यस्तता से इतर
जानकारी को लालायित दंभी शोर मचाता हुआ
भाषण पर उतारू होता है आमतौर पर वो
जिसने पढ़ देख लिया बहुत कुछ

उसके दावे में अक्सर टंकार है
वो पांव पटकता है हाथ झटकता है
और पसीने से तरबतर हो जाता है उसका शरीर
उसकी आँखों तक से उमड़ने लगता है क्रोध या वो सब
जो वो फ़ौरन कह देना जानता है सामने वाले को चौंकाने के लिए
ऐसे भी होते हैं कुछ व्याकुल विद्वान
बोलते चले जाते हैं अस्तित्व के किनारों तक
किसी को साथ लेकर
और अकेले लौटते हैं तेज़ी से
हाँफ़ते रक्तचाप के साथ

खीझ कर कोई नासमझ कहता है
बंद करो ये धूल झाड़ना बच्चों बूढ़ो स्त्रियों और युवाओ और सब लोगों के बीच
पर ये भी ऐसी निर्लज्ज आदत है
कि बढ़ता ही जाता है प्रदूषण
फैलता ही जाता है दुष्चक्र विद्वता का।