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विधना करी देह न मेरी / ईसुरी
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
विधना करी देह न मेरी,
रजऊ के धर की देरी।
आवत जात चरन की घूरा
लगत जात हर बेरी।
लागी आन कान के ऐंगर,
बजन लगी बजनेरी।
उठत चात अब हाट ईसुरी
बाट भौत दिन हेरी।