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विधि ने स्वयं जिसे है निज हाथ से सँवारा / रंजना वर्मा
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विधि ने स्वयं जिसे है निज हाथ से सँवारा
है गर्व हमे जिस पर वह देश है हमारा
गिर ब्रह्म कमंडल से हिमगिरि शिखर पे आयी
पावन सलिल धरा पर ले आयी गंग - धारा
जिस कूल भानुजा के खेला कभी कन्हैया
वह कूल आज तक है प्राणों से हमें प्यारा
सरहद पे जागते हैं जिस देश के सिपाही
मिलता उसे सदा ही है जीत का इशारा
है वक्त गुजर जाता समझी न अगर कीमत
गुजरा हुआ समय फिर आता नहीं दुबारा
चलते रहो सुपथ पर करना न पाप कोई
भगवान ने दिया जो उस में करो गुजारा
जो स्वाभिमान वाले चलते हैं सिर उठा कर
झुक कर किसी के' आगे कब हाथ है पसारा