माय दुर्गा हे दुख मिटाय देॅ
नाय पार लगाय देॅ...
बढ़ै नै पशुबल, छीन-छोर झगड़ा
रहै नै भेद-भाव, रहै नै रगड़ा
झंझट-झारी मिटाय देॅ-नाय...
उजरोॅ मौसम के उजरोॅ छै पत्ता
नफरत के पाशा पर पतझड़ के सत्ता
ठुट्ठोॅ में पत्ता उगाय देॅ नाय.
बहै ई धरती पर प्रेम रस धारा
गछियो उगै दुबारा-तिबारा
ऊसर परती पटाय देॅ-नाय.
विनती करै छी माय दुर्गा उबारोॅ
‘उजरोॅ मौसम’ के नजरी निहारोॅ
भाव के अक्षर बनाय देॅ-नाय.