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विनयावली(प्रथम पद), / तुलसीदास

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विनयावली


ऐसेहू साहब की सेवा सों होत चोरू रे।

अपनी न बूझ, न कहै को राँडरोरू रे।।
 
मुनि-मन-अगम, सुगत माइ-बापु सों।
 
कृपासिंधु, सहज सखा, सनेही आपु सों।।

लोक-बेद-बिदित बड़ो न रघुनाथ सों ।

सब दिन सब देस, सबहिकें साथ सों।।
 
स्वामी सरबग्य सों चलै न चोरी चारकी।

 प्रीति पहिचानि यह रीति दरबारकी।।

काय न कलेस-लेस, लेत मान मनकी।

सुमिरे सकुचि रूचि जोगवत जनकी ।

रीझे बस होत, खीजे देत निज धाम रे।

फलत सकल फल कामतरू नाम रे।।

बेंचे खोटो दाम न मिलै, न राखे काम रे।

सोऊ तुलसी निवाज्यो राजराम रे।।


म्ेारो भलो कियो राम आपनी भलाई।
 
हौं तो साईं-द्रोही पै सेवक-हित साईं।।

रामसों बडो है कौन, मोसों कौन छोटेा।

राम सेा खरो हैं कौन, मोसो कौन खोटो।।
 
लोक कहै रामको गुलाम हौं कहावौं।

एतो बडो अपराध भौ न मन बावौं।।

पाथ माथे चढ़े तृन तुलसी ज्यांे नीचो।

बोरत न बारि ताहि जानि आपु सींचो।।