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विनय पत्रिका / मृत्युंजय

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गोईयाँ, मुझको मुझ से ही डर लागे
रफ़ू करो तुम जली चदरिया मैंने नोचे धागे
आत्मवँचना सधी इस क़दर आत्मतोष में जागे
सुख डबरा ले-ले छपकोइया नेह नदी हम त्यागे
इतना मिला सम्भाल न पाए अधम कृतघ्न अभागे
भाव-विचार कठिन रस्ता है गोड़ धरत अपराधे
विनय पत्रिका में भी मैंने मैं ख़ातिर वर माँगे